‘रामायण मंच’ रामायण रिसर्च काउंसिल (ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत) का एक प्रकल्प है जिसका उद्देश्य हमारे देश के सांस्कृतिक मूल्यों का संवर्धन करना है। इसकी आवश्यकता इसलिए आई क्योंकि आज हमारे सामने बहुत बड़ी चुनौती है। चुनौती है, इस डिजिटल और आधुनिक युग में अपने घर के बच्चों को आपत्तिजनक विषयों से बचाने की। एक कटु सत्य है कि बच्चों को स्कूलों में शिक्षा तो मिल रही है, लेकिन उनमें संस्कार और अनुशासन का लोप होता जा रहा है। उनमें धैर्य की कमी होती जा रही है।
विस्तार से चर्चा करें तो ‘रामायण मंच’ का उद्देश्य है- बच्चों में अनुशासन, संस्कार एवं सांस्कृतिक भावनाओं को बढ़ाना। एक आदर्श जीवन कैसा होना चाहिए, इसका उदाहरण देना और संदर्भ देना श्रीरामचरितमानस का। ऐसे श्लोक व चौपाइ, जिनसे हमें कुछ संदेश मिलता है और जो हमारी लौकिक समस्याओं का भी समाधान करता है, उनके प्रति बच्चों में चेतना जागृत करना। काउंसिल का मानना है कि यही वो पुनीत कार्य और सूत्र हो सकता है जिससे हम आने वाली पीढ़ी को सुसंस्कृत भी कर सकते हैं।
और पढ़ें →मां सीताजी के प्राकट्य क्षेत्र सीतामढ़ी (बिहार) को तीर्थ क्षेत्र के रूप में विकसित करने के लिए काउंसिल की पहल। काउंसिल के प्रयत्नों को देखते हुए बिहार राज्य धार्मिक न्यास पर्षद ने हाल में सीतामढ़ी में राघोपुर बखरी स्थित 833 वर्ष पुराने श्रीराम-जानकी स्थान पर काउंसिल को 12 एकड़ भूमि आवंटित की है। काउंसिल ने इस मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ यहां की भूमि पर 51 शक्तिपीठों से मिट्टी एवं ज्योत लाकर शक्ति-स्वरूप में एक मंदिर को स्थापित करने का संकल्प लिया है।
और पढ़ेंअयोध्या में लगभग 500 वर्षों के संघर्ष पर आधारित ग्रंथ ‘श्रीरामलला- मन से मंदिर तक’ हिन्दी भाषा में तैयार है। ग्रंथ 1250 पृष्ठों का है तथा हिन्दी के अलावा 10 अन्य अंतरराष्ट्रीय भाषाओं में तैयार किया जा रहा है। मा. प्रधानमंत्री जी का विशेष आभार जिन्होंने ग्रंथ-लेखन के दौरान काउंसिल के महासचिव श्री कुमार सुशांत को समय देकर ग्रंथ के पूरे विषय को समझा। ग्रंथ को 21 देशों में विमोचन करने का संकल्प है तथा संयुक्त राष्ट्र के सभी देशों में डिजिटल रूप से प्रसार का संकल्प है।
और पढ़ेंहम देवभाषा संस्कृत भाषा का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करना चाहते हैं। इसलिए हम संस्कृत भाषा में पाक्षिक पत्रिका ‘रामायण वार्ता’ का प्रकाशन करते हैं। हम संस्कृत के प्रशिक्षण पर भी कार्य करते हैं। हमने संस्कृत भाषा के प्रति आमजन में जागरूकता हेतु 60 दिनों का एक कोर्स ‘देवभाषा संस्कृत सीखें’ डिवेलप किया गया है। इसे टेक्स्ट और डिजिटल दोनों प्रारूप में तैयार किया गया है जिसके माध्यम से शिक्षण एवं प्रशिक्षण हेतु संस्कृत के प्रसार के लिए कार्यशाला भी आयोजित करते हैं।
और पढ़ें‘रामायण रिसर्च काउंसिल’, नई दिल्ली में ट्रस्ट के रूप में एक पंजीकृत संस्था है जिसका गठन वर्ष 2020 में हुआ है। संस्था आयकर विभाग अंतर्गत 12A एवं 80G संबद्ध है। काउंसिल संतों के नेतृत्व एवं सानिध्य में ही कार्य करती रही है। काउंसिल का उद्देश्य हमारे देश के सांस्कृतिक मूल्यों का संवर्धन करना है। काउंसिल का मानना है कि प्रभु श्रीराम और श्रीभगवती सीताजी का जीवन एक आदर्श प्रेरणा-स्रोत है जिनका अनुसरण कर तथा पदचिन्हों पर चलकर हम अपने जीवन को सफल, सार्थक और अनुशासित बना सकते हैं।
काउंसिल का उद्देश्य है, हमारे समाज को सुसंस्कृत एवं संस्कारित बनाना। हम विशेषकर छोटे बच्चों में अनुशासन, संस्कार एवं संस्कृति की जानकारी देना चाहते हैं। इसलिए काउंसिल के प्रकल्प ‘रामायण मंच’ के बैनर तले छोटे बच्चों में संस्कार प्रदान करने पर कार्य कर रहे हैं। काउंसिल अपने उद्देश्य में सफल भी रही है। काउंसिल की सफलता का ही परिणाम है कि आज ‘रामायण मंच’ पर एंकरिंग करने वाले वेदांत ठाकुर जी बाल कथा व्यास हैं और जो वैदेहीनंदन पंडित वेदांत जी महाराज (11 वर्षीय बाल व्यास) के नाम से प्रचलित हैं। आपको बता दें कि बाल व्यासजी ने बालमन को सांस्कृतिक विचारों से जोड़ने वाले पद्य ‘वेदांत पुष्प’ को तैयार किया है
मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता है कि रामायण रिसर्च काउंसिल ने श्री राम जन्मभूमि पर राम मंदिर के निर्माण के लिये चले लम्बे संघर्ष पर गहन शोध किया है और इस इतिहास को पुस्तक रूप देने का निर्णय किया है।
मुझे यह जानकर हर्ष हुआ कि ‘रामायण रिसर्च काउंसिल’ द्वारा अयोध्या में निर्माणाधीन प्रभु श्रीराम मंदिर के लिए राम भक्तों द्वारा किए गए लंबे संघर्ष के गहन शोध पर आधारित पुस्तक ‘श्रीरामलला–मन से मंदिर तक’ का हिन्दी एवं संस्कृत के अलावा अन्य 10 अंतर्राष्ट्रीय भाषाओं में प्रकाशन किया जा रहा है।
यह जानकर सन्तोष हुआ है कि ‘रामायण रिसर्च काउंसिल’ प्रभु श्रीराम मंदिर संघर्ष के ऊपर गहन शोध के उपरान्त 1108 पृष्ठों की पुस्तक ‘श्रीरामलला–मन से मंदिर तक’ को जनमानस में लाने की तैयारी में जुटी है।
“पूनी पूनी कितनी हो सुनी सुनाई, मन की प्यास बुझे न बुझाई” प्रभु राम की कथा ही कुछ न्यारी और अनन्य है। “श्री रामलला – मन से मंदिर तक” ग्रंथ के यशस्वी अनावरण के लिये मेरी शुभकामना।
हर्ष का विषय है कि रामायण रिसर्च काउंसिल अयोध्या द्वारा प्रभु श्रीराम मंदिर निर्माण पर गहन शोध आधारित और सबसे अधिक 1,108 पृष्ठों वाली पुस्तक "श्रीरामलला - मन से मंदिर तक" का प्रकाशन किया जा रहा है।
रामायण रिसर्च काउंसिल के तत्वावधान में श्रीराम मंदिर - अयोध्या सम्बन्धी पर गहन शोध एवं विभिन्न विषयों को समावेश करनेवाली पुस्तक "श्रीरामलला - मन से मंदिर तक" का प्रकाशन किया जा रहा है, यह जानकर अति प्रसन्नता हुई।
सुदीर्घ संघर्ष के सुखद सफलता से श्री रामलला के भव्य मंदिर के निर्माण का कार्य प्रारंभ होने पर समस्त जन मानस प्रसन्नता से भाव-विभोर है। आज अनगिनत श्रीराम अनुयायियों के सदियों का स्वप्न साकार हो रहा है।
मुझे अत्यंत हर्ष की अनुभूति हो रही है तथा श्रीराम सीटों समिति के मुख्यकार्यकारिणी सदस्य के रूप में शामिल होने की आग्रही हूँ। मैं इस पवित्र कार्य हेतु प्रारंभ श्रीराम सीटों समिति के मुख्य कार्यकारिणी में शामिल होने की सहमति प्रदान करती हूँ।
आपके शुभकामनाओं के लिए मैं आभारी हूँ। इस भयंकर कोरोना महामारी के दौरान समाज में सकारात्मकता लाने और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के गुणगान हेतु रामायण अनुसंधान परिषद्, अयोध्या द्वारा किये गए महान कार्यों से अवगत कराते हुए जो ग्रंथ आपने भेजा है, उसे पढ़कर मुझे बहुत खुशी हो रही है। रामायण अनुसंधान परिषद् का आगामी प्रकाशन "श्रीरामलला – मन से मंदिर तक" एक पवित्र और सार्थक कार्य है।